शनिवार, 25 जुलाई 2020

आज धुंधलके उसको देखा

आज धुधल्के उसको देखा
दूर क्षितिज के बीच कहीं 
कौंधी इक जीवन रेखा 
आज धुधल्के उसको देखा
                      
गुमसुम चुपचुप व्योम घूरती
नयनो में नीर लिए 
अधरो पर इक सूखी बिखरी 
दर्द भरी मुस्कान लिए 

शांत था मुखड़ा बिखरी अलकें 
वसन बदन पर अस्त व्यस्त 
कंपित तन औ विह्वल मन से 
व्यथित हुए हिय प्राण लिए 

सम्हल सम्हल कर पग धरते 
अनिल वेग से थरथर कपते
हाथ पसारे आगे बढ़ते 
इक विरहन सा गात लिए 

अपने अगम हिय प्रदेश में 
उसके आगम को सह के 
उसकी पीड़ा में निज हिय को
मैने आज मचलते देखा 

आज धुधल्के उसको देखा....

...उमेश श्रीवास्तव....21.05.1989

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