मंगलवार, 14 जुलाई 2020

ललकार

आ रहा हूं, 
ऐ समन्दर, 
रोकना है तो रोक ले
कल न कहना
भय-सूचना बिन
तुझको पराजित है किया ।

वो और होंगे जो तेरी
लहरों से भय खा गये
हम तेरी लहरों पे अपने
गीत लिख के जायेंगे ।

है गुमां तुझको तेरी
अथाह गहराईयो का गर
हम तेरी अतलों में भी
महफ़िल सजा दिखाएंगे ।

हमने सीखा ये ही सदा
झंझावतों को झेलना
तू मचल ले  आज जी भर
कल से मुझे तू झेलना ।

हूं जानता, कुछ भी नहीं
सहज मिलता है यहां
पुरुषार्थ पर कर भरोसा
तब ही तो आया हूं यहां ।

ना चाहता सहज में ही
झोली में मोती आ गिरे
कर्म से ,तल से तेरे
ले जाऊंगा तुझसे परे ।

झंझावतो के साथ तू
रोर कर ले ,नाद कर
फेणित तरंगों संग चाहे
रौद्र श्यामल जलधि कर ।

जो कदम मेरे उठे है
ना रोक तू अब पायेगा
राह दे स्वागत कर तू
या पराभव पायेगा। ।

उमेश कुमार श्रीवास्तव , जबलपुर, दिनांक १५.०७.२०१७

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