आकर्षण
माया जाल का वह अदृष्य रेषा है
जो तंतु भी है
हिनहिनाहट व दहाड़ भी
पर अनिश्चित
क्यों कि इसमें
विकर्षण का योग भी
छिपा रहता है यूं
जैसे जन्म में छिपी मृत्यु ।
अद्धैत का घोष
दृष्यमान अनेकता
भ्रम है दृष्टि का
तार्किक विचार शक्ति व अहंकार का
जो ऊर्जा ब्रम्हाण्ड में व्याप्त है
वह नित निरन्तर है
अखण्ड अविभाज्य
दो फलकों के साथ
दृष्य व अदृष्य
उसी ऊर्जा की प्रतिकृति हैं सभी
कोई धनी ऊर्जा
कोई ऋणी ऊर्जा
के संवाहक
आकर्षण - विकर्षण
कब कहां होगा
उसके उद्भव क्षेत्र पर
निर्भर करता है
अतः मेल, ऋजु होगा वक्री होगा
या मिलन में अश्व सा वेग होगा
या होगी शेर की दहाड़
सब अनिश्चित है
पर इस धरा पर
आकर्षण सनातन
सुख आनंद का पुनः मिलन है
विकर्षण विपरीत इसका ।
'रेषा' (Resha) के कई अर्थ हैं, जिनमें मुख्य रूप से रेखा (Line), यानी एक लंबा निशान या सीमा, और रेशा (Fiber), यानी धागा या तंतु, शामिल हैं; इसके अलावा, यह संस्कृत में घोड़े की हिनहिनाहट या शेर की दहाड़ के लिए भी इस्तेमाल होता है, और कभी-कभी इसका अर्थ 'अनिश्चित' भी होता है, खासकर पुराने दस्तावेजों में.