गुरुवार, 27 अगस्त 2020

गजल၊ आपको आप से ही ,चुरा क्यूं न लूं

गजल

आपको आप से ही ,चुरा क्यूं न लूं
आपकी जो रज़ा हो, गुनगुना क्यूं न लू।
आपकी शोखियां मदहोश कर गई
सोचता हूं बे-वजह मुस्कुरा क्यूं न लूं।

हूं जानता आप मेरे नहीं, 
इस दिल में आपके बसेरे नहीं
मानते पर कहां दिल के जज्बात हैं
इक घरौंदा तिरा मैं बना क्यूं न लूं ।
आप यूं चल दिये ज्यूं देखा नहीं
रूप की धूप को चांदनी से उढ़ा
चांदनी से जला,खाक बन जायेगा
खाक-ए-बदन फिर उड़ा क्यूं न लूं।

कदमों में लिपट चैन पा जाऊंगा
गेसुओं में भी थोड़ा समा जाऊंगा
सबा से जो मदद,थोड़ी मिल जायेगी
बदन से लिपट झिलमिला क्यूं न लूं।
आपको आप से ही चुरा क्यूं न लूं
आपकी जो रज़ा हो गुनगुना क्यूं न लूं ।

उमेश २८.०८.२०१६ जबलपुर ၊

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