बुधवार, 5 अगस्त 2020

चन्द शेर

चंद शेर

दामन न छोड़ तू कभी रज़-वो-सब्र का
तकदीर को तदबीर से बदलेगा ओ खुदा

ये रिज़ा है यार, ना तेरी मेरी खता
जो मिलना चाह कर भी हम मिल नहीं पाते

बिना रिज़ा के क्या कभी गुल खिले चमन में
यूँ देखते रिज़ा से , खार गुल से महक उठे

....उमेश श्रीवास्तव

हुस्न का दीवाना संसार नज़र आया
खुली जो आँखे नींद से व्यापार नज़र आया
..उमेश

बसते हैं दोजख की नादिया के किनारे
ख्वाबों में बसाए हुए जन्नत के नज़ारे 
ख्वाबों को रूबरू करने का है हौसला 
 बदलेंगे हम तस्वीर को अपने कर्मों के सहारे
...उमेश

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