बुधवार, 5 अगस्त 2020

मित्रता दिवस पर लिखी कविता व सन्देश , मीत मेरे

मीत मेरे
 
मीत मगन मन बदरा छाये,
तुम आये पुन बालसखा सम, 
उमड़ गरज बरखा बून्दो सम, 
तर कर दीन्ही मोरि चदरिया, 
आपा धापी छोड़ लखूं तुम्हे,
निरखत भूली पलक डगरिया
रीती रीतीरही आज तक
भर गई मोरी पूरी गगरिया ।

सभी मीत जन को सादर नमन, इस जीवन में उमंग ,तरंग ,हर्ष ,उल्लास ,अल्हड़ता ,सरलता, सहजता ,आत्मीयता ,स्नेह ,दुलार ,प्यार ,सत्कार ,जो आनन्द प्रदान करने वाले गुण हैं को बाल सुलभ बनाये रखने हेतु आपका जो अमूल्य साहचर्य सहयोग मिला है जिनसे मेरा यह जीवन बना है ,के लिये मैं धन्यवाद दे उसका अवमूल्यन करनें की घृष्टता न करूंगा,हां अपेक्षा अवश्य करूंगा कि यूं ही बच्चे को अपने में जीवित रखें और मुझमें भी मेरे अन्दर के बच्चे को हर्षित और जीवित रखने में सहयोग देते रहें । क्यों कि आज तो बच्चों ने जन्म लेना छोड़ दिया है वे सीधे प्रौढ़ रूप में जन्म ले रहे । "बचपन" से धरा रिक्त न हो इस हेतु हम सब का दायित्व भी है कि एक दूसरे का सहयोग कर अपने अन्दर के बच्चे की उसी रूप में जीवित रखें । जिससे सखा भाव भी धरा पर जीवित रहे । बालसखा के अनुरूप ।  
सभी को पुनः मित्रता दिवस की शुभ कामनाएं ...उमेश श्रीवास्तव ०६.०८.२०१७ जबलपुर

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