मंगलवार, 1 सितंबर 2020

मेरे विचार

       मेरे विचार 

      प्रत्येक व्यक्ति अपनी समझ, अपने विचार और अपने कार्य-व्यवहार को अन्तिम सत्य मान कर दूसरों से अपेक्षा करता है कि वे उसी के अनुरूप अपने कार्य-व्‍यवहार का निरूपण, निष्पादन व क्रियान्वयन करें , यही दुःख का मूल है क्योंकि वह स्वयं भी दूसरे व्यक्ति के लिये दूसरा है ၊
      इस श्रृष्ठि में मानव के अद्भव काल से मानव कार्य व्यवहार का नियमन होता आया है , हर काल विशेष में उस काल की परिस्थितियों के अनुरूप मानव के अच्छे व बुरे विचार ,आचरण व व्यवहार को परिभाषित किया जाता है उसी के अनुरूप समझ , विचार व कार्य व्यवहार मानव अंगीकृत करता है ၊
     आदि से सनातन निरन्तर वर्तमान तक, हर काल में जो आचरण , व्यवहार , विचार व कार्य उचित या अनुचित रूप में निरूपित होते आयें हैं उन पर किसी काल, स्थान विशेष या परिस्थिति विशेष का कोई प्रभाव नही पड़ा है वे ही सत्य अवधारित किये जा सकते हैं ၊ किसी काल विशेष ,स्थान विशेष व परिस्थिति विशेष में ही तार्किक बुद्धि से मानव समूह विशेष में जो आचरण ,व्यवहार ,विचार व कार्य प्रचलन में आयें हो उन्हे सत्य व प्रकृति के नियम के अर्न्तगत होना नही माना जा सकता ၊

     अतः उन आचार, विचार , कार्य व्यवहार को जो हर काल में व परिस्थिति में शास्वत रहे आयें हैं उन्हे दृष्टिगत रख अपने व दूसरों के कार्य व्यवहार व आचरण को हमे देखना चाहिए कि हम सही हैं अथवा वह दूसरा जिसे हम गलत ठहरा रहे ၊ दुःख का मूल कारण वहीं समाप्त हो जायेगा ၊ हां ऐसा करते आप को एक तटस्थ अम्पायर की भूमिका में रह मनन करना होगा ၊

उमेश कुमार श्रीवास्तव
इन्दौर
दिनांक ०१ .०९.२०२०

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