बुधवार, 23 सितंबर 2020

अनामिका

अनामिका

स्मृतियों में रेखांकन
रेखांकन में स्मृतियाँ
सब गडमड हो जाती
जब कभी तुम्हारी छवि
बैठता हूँ बनाने
मस्तिष्क के कैनवास पर

कभी कपोल कभी नयन
कभी अलकें कभी वसन
कभी अधर कभी कमर
शिखरों के कभी मोड़ पर
तूलिका अवरोधित हो
रुक सी जाती और मैं
केवल और केवल
उन्ही पर टिका ,चिंतन में गुम
परिचय के पूर्व ही तुम्हारे
समाधिस्थ हो जाता हूँ
और अधूरी रह जाती है
मेरी  साधना ,
चित्रांकन की तुम्हारी
बिना किसी परिचय
ऐ , मेरी अनामिका !

            उमेश कुमार श्रीवास्तव

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