रविवार, 13 सितंबर 2020

आज सोचता हूँ, कुछ कह लूँ

आज सोचता हूँ, कुछ कह लूँ

कितने दिन से मैं चुप था
आज सोचता हूँ, कुछ कह लूँ
समय जोहता कहाँ किसी को
उसके संग भी , कुछ तो रह लूँ

रही अदावट मेरी सदा ही
नये मूल्य आदर्शों से
किंचित पल अब ,ठहर सोचता
कुछ उनसे भी गागर भर लूँ

मैं पुरुषार्थ प्रतीक बना
विपरीत लहर के चलता था
पर मुर्दों सम , संग लहरों के
क्यूँ ना, बहने का,अनुभव कर लूँ

ज्ञान अधूरा तब तक, जब तक
द्धय, तम-ज्योति, ज्ञान न होवे
निमित्त इसी के,आज पाप से
चन्द पगों का गठजोड़ न कर लूँ

नहीं कह रहा , पुण्य भूमि हूँ
हूँ पाप पुण्य से मिला बना
पर , मथमथ कर इस जीवन को
क्यूँ ना आगत उज्ज्वल कर लूँ

कितने दिन से मैं चुप था
आज सोचता हूँ, कुछ कह लूँ

                   उमेश कुमार श्रीवास्तव

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