रविवार, 13 सितंबर 2020

कब तक बलिदानों की भाषा

कब तक बलिदानों  की भाषा
हम से बुलवावोगे   ?
कबतक त्यागों  की आशा ,
बस हममें ही पाओगे ?

कब तक एक जून की रोटी में भी
बचत हमें सिखलाओगे ?
कब तक अधनंगे  तन से , चीर ,
चीर , ले जाओगे ?

कब तक दानी कहलाने का हक़ ,
 बस, हमको दिलवावोगे ?
कब तक ज्वरित कांपते तन से
सकल बोझ  ढुलवावोगे  ?

बलिदानो का आह्यवाहन उठाने वालो
ऐ त्यागो की आश लगानें वालो
क्या वह दिन भी आएगा इस धरती पर
जब स्वयं  इन्हें अपना दिखलाओगे

ऐ पञ्च सितारा संस्कृतियो में पले  बढे
हो तुम तो चर्बी बोझ तले दबे पड़े
क्या वह दिन भी आएगा इस धरती पर ?
दूजो के हित , जब बचत तुम्ही दिखलाओगे

हम तो वंशज दधीचि  के कहलाते
तुम भी कर्णधार हो राष्ट्र भूमि भारत के
जब लेते अस्थि हमारी धरणी उद्धार हेतु
फिर तुम कब , कर्ण बन दिखलाओगे

                 उमेश कुमार श्रीवास्तव

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