शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

प्रेम पर दोहे

प्रेम पर मुक्तक


प्रेम रंग डूबे वही, 
जामे अनन्त को वाश ,
हर हिय में रमता वही ,
का आम का खास ।


हिय हिलोर के छानिये , 
नवनीत प्रेम अति मृदु ,
अंग अंग पर लेपिये , 
होये पीर विलुप्त ၊

प्रेम आश है बावरी
ना बैठे इक ठौर
सदा भटकती संग संग
मिलन कोश हो दूर ၊


प्रेम तृषा मृगलोचनी , 
भरमाये हर बार ,
तिरछे चितवन से लखे , 
जाये हिय के पार ၊

प्रेम न देखे रंग है,
प्रेम न देखे रूप,
जड़ चेतन जिससे जुड़े,
ढले उसी के रूप ၊

उमर न कोई प्रेम की
न कोई है गात
हिय मध्य जब ऊपजे
दमके दिन अऊ रात ၊ ।


उमेश कुमार श्रीवास्तव
इन्दौर
दिनांक : १२ . ०९ . २०

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