सोमवार, 14 मार्च 2016

जागो हे भारत

जागो हे भारत


अय मानवता के प्रहरी
रक्त के धब्बे
पड़े आज क्यू तुझ पर
है कौन छिपा, जो तुझसे
छीनता सौम्य आवरण तेरा
क्रूरता का पहनाने को वसन

अय सभ्यता दूत
उदगाता संस्कृति के
है कौन घोलता जहर
बर्बरता तामसी
वायु जल वाणी का

अय धर्म के प्राण
अध्यात्म के चिंतन
क्यूँ बाधित हुई है धार
कौन तंत्रिका रोध बना
निष्प्राण किया
कृषकाय भीम सम बदन

अय शक्ति के पुंज
किन्कर्तव्य विमूढ़ हुए क्यूँ
बर्बरता का देख तांडवी नृत्य
करते भयभीत सभ्यता सस्कृति को
जब करने को एकता भेद

अय अजर अमरता दीप
उठो उठो तुम जागो
भयभीत हुई संस्कृति
आलस्य तुम त्यागो
आज जलाओ फिर वैसी ही ज्वाला
यज्ञ भूमि पर बैठ , जपे सब
भारत की ही फिर माला
...उमेश श्रीवास्तव...


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