मंगलवार, 29 मार्च 2016

गजल

गजल

मैं चाहता बहोत हूँ, खोया रहूं तुझी में
पर करूं क्या मैं, तेरा , ये गुरुर रोक देता
कहने को बंदिशें हैं , जमानें की हर तरफ
है मजाल क्या किसी में ? तेरी बंदगी रोक देता
सरफरोश हूं मैं तेगे जुनू है अब तक,रुकता नहीं मैं अब तक,जो तू ही रोक देता
मिलते नहीं ऐसे,अब सरफरोश दिवाने
जाना जो तूने होता, तो यूँ टोंक देता
जन्नत की चाशनी गर, ये हुश्न है तुम्हारा
चखने को स्वाद इसका क्यूं , मरनें नहीं है देता
उमेश (२६. ०३. २०१६)


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