शुक्रवार, 18 मार्च 2016

भटकन


भटकन

मैं रोता हूँ , या मैं हँसता
आज मुझे ये याद नहीं
कल रोता था या था हँसता
ये भी मुझको याद नहीं

सुख की किरण मिली थी कोई
इस पड़ाव तक आते आते
तम में खोई इन आँखो को
ऐसी कोई याद नहीं

उस पड़ाव से चला था जब मैं
थी इक गठरी कुछ अनुभव की
सुख था ? दुख था ? या दोनो था ?
यह भी बिल्कुल याद नहीं

यहाँ से आगे कहाँ है जाना
या तम में होगा खो जाना
जाना है तो किस पथ जाना
आया अब तक याद नहीं

कहाँ से आया ? कहाँ हूँ आया ?
कहाँ टिका हूँ ? कहाँ है जाना ?
भटक रहा हूँ इन प्रश्नो में
उत्तर आता याद नहीं
.....उमेश श्रीवास्तव...17.10.1993




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