शनिवार, 12 मार्च 2016

पलाश

पलाश

पलासहृदय अकुलाया फिर से
रक्त उबल आया अधरों पे
सिकुड़ा सिमटा खड़ा बावला
ज्यूँ नारी चीर हरण से

लीप लहू से आँगन अपना
टिकी नज़र अब उसके दर पे
चाह लिए हुलसाए हिय में
आएगी वह अब तो दर पे

उसके नयनो में उतरूँगा
पुलकित हो ऐसे लिपटूँगा
खो उसमें मैं जाऊँगा
प्यार करूँगा जी भर भर के

नई उमंगे पा जाऊँगा
नया गात ले आऊंगा
फाग राग यूँ गूंजेगी
स्पंदन होगा पत्थर पे

पलासहृदय अकुलाया फिर से
रक्त उबल आया अधरों पे
सिकुड़ा सिमटा खड़ा बावला
ज्यूँ नारी चीर हरण से

उमेश कुमार श्रीवास्तव(१८.०३.१९९२)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें