बुधवार, 10 मार्च 2021

ग़ज़ल : तरासते रहे औरों को

ग़ज़ल

तरासते रहे औरों को , कमियाँ निकाल निकाल
गर खुद को तरास लेते हर दिल अज़ीज होते

औरों ने चाहा जब जब हमको तरासना
अपने गुरूर में हम आपा रहे हैं खोते

हमने तो जाना ये ही हम से भला न कोई
औरों की मज़ाल क्या जो कह दे हमे हो खोटे

हम जान ये रहे थे मसहूर हो रहे हैं
बदगुमानियों में शायद अब तक रहे हैं सोते

ऐ जिंदगी तुझसे बस एक ही गिला है
क्यूँ शामिल किए नहीं, जो सच्चे मीत होते

तरासते रहे औरों को , कमियाँ निकाल निकाल
गर खुद को तरास लेते हर दिल अज़ीज होते

उमेश कुमार श्रीवास्तव ( ११.०३.२०१६)

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