रविवार, 28 मार्च 2021

मुक्तक

जिन्दगी सदा मुस्कुराती नहीं, 
दर्द की पोटली वो छिपाती नहीं
क्यों परेशां हो रहा देख आफताब को
कौन कहता तलखियां आ के जाती नहीं।
  .....  उमेश......(२८.०३.२०१६)


मिलती रही निगाहों से निगाहें बार बार
सबब बस यही था मदहोसी का हमारी ।
उमेश श्रीवास्तव


चंचल मन उन्मुख रहे सदा पाप की ओर
धर्म राह पर चल पड़ने को लगे सदा ही जोर ।
 
उमेश श्रीवास्तव

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