गुरुवार, 25 मार्च 2021

गजल

गजल

मैं चाहता बहोत हूँ, खोया रहूं तुझी में
पर करूं क्या मैं, तेरा , ये गुरुर रोक देता ।

कहने को बंदिशें हैं , जमानें की हर तरफ
है मजाल क्या किसी में ? तेरी बंदगी रोक देता ।

सरफरोश हूं मैं तेगे जुनू है अब तक,
रुकता नहीं मैं अब तक,जो तू ही न रोक देता ।

मिलते नहीं ऐसे,अब सरफरोश दिवाने
जाना जो तूने होता, तो यूँ न टोंक देता ।

जन्नत की चाशनी गर, ये हुश्न है तुम्हारा
चखने को स्वाद इसका क्यूं  , मरनें नहीं है देता 

उमेश (२६. ०३. २०१६)

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