गुरुवार, 11 मार्च 2021

मैं प्यार हूं

मैं प्यार हूं, 
क्या तुम भी कहोगी ?
मैं बहता तरल हूं , 
क्या तुम भी बहोगी ?
मैं प्यार हूं , क्या तुम भी कहोगी ?

बसन्ती है रंगत
मेरे गात की
मादक-मोहनी छवि
मेरे जाति की ,
क्या रंगत मे मेरी 
तुम भी घुलोगी
उन्मत्त हो कर
मुझ संग चलाेगी ?

वीणा की धुन सी
वाणी है मेरी 
मधु चासनी सी
वचनों की लड़ियां
सुधा के बिना
हैं कुपोषित ये सारे
क्या लता सोम बन तुम
पोषित करोगी ?

है पथ ये दूभर
पर,मादक डगर है
कटंक भरा पर
सुरभित भ्रमण है
चला जो भी इस पर
डगमग ही डगमग
सहारा मिला तो
सुहाना सफर है
क्या मेरे संग मेरी
हमडग तुम बनोगी ?

जब से धरा है
भटकता रहा हूं
टूटता भी रहा हूं 
बिखरता रहा हूं
जब भी मिली तुम
संवर भी गया हूं
प्रेम के ही सहारे
निखर भी गया हूं 
क्या नयनों की अमी को
अधरों पे ला के
मेरे प्राण मुझको अर्पित करोगी  ?

उमेश कुमार श्रीवास्तव
केराकत , जौनपुर
दिनांक : ११.०३.२०२१.



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