रविवार, 28 मार्च 2021

अय नदिया की निर्मल धारा

अय नदिया की निर्मल धारा
तू क्यूं बहती रहती है
शीतलता का ओढ़ आवरण 
सबको शीतल करती है।

कल कल कलरव निश्छल निर्मल
अविकल अविचल सदा निरन्तर
नहीं शोर, बस निर्झर निर्झर
सब को आन्दोलित क्यूं करती है ।

अहंकार प्रतिरोध अगर
निर्मलता तज ले रौद्र रूप
कर देती सबको भयाक्रान्त 
क्या अबला की सबलता दर्शाती हो ?

चंचल वन , निर्जन आंगन
पाषाणित गज, कुशुमित उपवन
सबमें रस भर सुरभित कर कर
 क्या बैभव अपना झलकाती हो

उमेश (28.०३.२०१६)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें