रविवार, 28 मार्च 2021

शाख से गिर कर*

*शाख से गिर कर*

शाख से गिर कर बिखर गये जो 
उन पत्तों का कहना क्या
पीत बदन जो पड़े बावले 
उन पत्तों का कहना क्या

कल तक जिन के अंग रहे थे
सुख दुख जिन के संग सहे थे
वे विदेह बन जायें तो फिर
उन शाखों को कहना क्या

कई कई अंधड़ थे देखे
कई मेघ भी आये झूमे 
जेठ दुपहरी जिन संग झेली
वे सब अब हो गये पराये
दूर उन्ही से यूं पड़े एकाकी 
इन पत्तों का कहना क्या

शिखर से टूटा अब कदमों में
सखा वृक्ष की शाखाओं का
आज एकाकी मात्र पात जो
सूखे सिमटे पीत गात के
उन पत्तों का कहना क्या

पिछला पल ही जीवन था
वह भी जीता हर पल था
नही जानता अगला पल क्या
समय भागता पल पल था
समय की धारा से अनजाने
झ्न पत्तों को कहना क्या

शरद,शिशिर,हेमन्त भी देखे
बसन्त राग संग झूमा भी था
ना जाने कितने पुष्पों को
अपने अधरो से चूमा भी था
पद तल विखरे निःसहाय पड़े जो
इन पत्तों का कहना क्या 

शेष बची कुछ चंद घड़ी हैं
कदमों में भी ना आश्रय होगा
पवन लहर पर सवार हो
दूर दृगों के पार  जो होंगे
शाख से टूटे  विलग हुए
इन भग्न ह्रदय पत्तों का क्या

प्रकृति नियम ये सदा रहा
जो जुड़ा रहा वह फूला फला
एकाकी बन जो रहा अहंपोषित
वो पर चरणों का दास रहा
परिपक्व हुआ, हूं श्रेष्ठ जना
ज्यूं भाव जगा ,वो विलग हुआ
ज्यूं विलग पड़ा पीतांग बना
इन पीत बदन पत्तों का क्या

उमेश कुमार श्रीवास्तव ,जबलपुर दि० २७.०३.१७

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