गुरुवार, 2 जनवरी 2014

बदल गया इन्सान

बदल गया इन्सान 


ये मानव रीति  निराली 
ये भौतिक प्रीति  निराली 

कलुषित मन औ उज्जवल तन पर 
करता है अभिमान 
दया धर्म कि बातें छोड़ी 
हुआ आज पाषाण 
ये मानव रीति  निराली 
ये भौतिक प्रीति  निराली 

छोड़ सभी रिस्ते नाते 
बैठा , कर निज ध्यान 
पैसों के पीछे पागल हो 
भाग रहा इन्सान 
ये मानव रीति  निराली 
ये भौतिक प्रीति  निराली 

अन्तर्मन  को, तम कर डाला 
बुद्दि किया बलवान 
पशुओं को पीछे छोड़ा 
कहलाते इन्सान 
ये मानव रीति  निराली 
ये भौतिक प्रीति  निराली 

प्रेम , विलास का रूप बनाया 
किया , काम , का ध्यान 
इनकी संतति कैसी होगी 
अब जाने भगवान 
ये मानव रीति  निराली 
ये भौतिक प्रीति  निराली 

खीझ रहा ,खिसियाय  रहा 
ना , करनी  देता ध्यान 
उसी डाल  पर बैठ काटता 
उसी को ये इन्सान 
ये मानव रीति  निराली 
ये भौतिक प्रीति  निराली 

नही आज भी बदल सका तो 
रोयेगा ब्रम्हाण्ड 
मिट जायेगी हस्ती सारी 
सिसकेंगे हर प्राण 
ये मानव रीति  निराली 
ये भौतिक प्रीति  निराली 

                   उमेश कुमार श्रीवास्तव 

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