मंगलवार, 7 जनवरी 2014

नारी

नारी 


मौसम का प्यारा  गीत है तू 
हर  मन का वह संगीत है तू 
जिसे चुन  झूमे धरा गगन
वह अन्तस की सुरम्य ,प्रीत है तू 

श्रृंगारमयी आगार है तू  
जीवन की  मधुर झंकार है तू  
करतल ध्वनि से अनुगुंजित 
पावन शिव का द्वार है तू 

सरिता  की चंचल धार है तू 
निर्झरणी रस की फुहार है तू 
शीतल कर दे तन मन दोनों 
ऐसी ध्वनि नाद ऊँकार है तू 

असुरो के विनाश निमित्त उठी 
महा काली की हठी तलवार है तू  
सु-सभ्य बने मानव जीवन की 
प्रथम पगी गुरु द्वार है तू 

इस जग की पालनहार है तू 
इस जग की तारणहार है तू 
अपना रूप न बदल नारी 
मानव का  घर , आँगन ,द्वार है तू 

वसुधा की जीवन कारक तू 
ना चूस मृदु जीवा रस को यूँ 
मानव रिक्त बने ये धरा 
ना बन इसका कारक तू 

                        उमेश कुमार श्रीवास्तव 

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