सोमवार, 6 जनवरी 2014

नई राह जीवन की ……?

नई  राह जीवन की ……? 


ये टूटते सम्बंध
ये टूटते संम्बंध
पश्चिम ने सिखाए
नित नये जो सम्बन्ध

निज स्वार्थ हेतु बहना देखो
भइया को विष दे आई है 
वामा ने वर की स्वार्थ हेतु
इहलीला आज मिटाई है
बहना की इज़्ज़त भइया ने
अपने हाथो लुटवाई है
बेटे के हाथो ममता ने
अपनी अस्मिता गवाँई है

क्यूँ चौक रहे हो हे भारत
ये सत्य हो रहे आज कहर
अब पूर्व, पूर्व रहा कैसा
आया जब से पश्चिम का भंवर

माँ जब अपने ही कर से
गृह दीपक आज बुझाती है
बेटे के पद तल माँ की बिंदी
जब आज मसल दी जाती है
तो विस्मय की बात कहाँ
कि, लगी है बेटी की बोली
पिता पुत्र पर चला रहा
अपने हाथो ही गोली

पश्चिम सिखा रहा देखो
कितना सुंदर यह किस्सा
अब तक रोते थे बस वे ही
अब बाँट दिया हमको हिस्सा

               उमेश कुमार श्रीवास्तव

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