बुधवार, 22 जनवरी 2014

ग़ज़ल



मैं चाहता था देखना धड़कन को अपने दिल की
देखा वहाँ तो तेरा घरोंदा बना हुआ है

खूं में थी रवानी औ जोश-ए-जुनू भरा था
अलमस्त तेरा चेहरा उसमें सज़ा हुआ है 

मैने की ज़रा सी जो मिज़ाज-पुरसी दिल से 
मुझको लगा कि जैसे वो तुझसे मिला हुआ है 

अजनबी सा खड़ा था मैं खुद के नसेमन में 
कहने को दिल मेरा था अनजाना सा जो हुआ है

तुम ही बताओ जानम जाएँ तो जाएँ कहाँ हम
उस दिल में ही अब जगह दो जो तेरा नहीं रहा है 

                               उमेश कुमार श्रीवास्तव

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