शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

नौका-विहार(केराकत-जौनपुर गोमती नदी शिव-घाट)

नौका-विहार(केराकत-जौनपुर गोमती नदी शिव-घाट)

वह शान्त घाट एकांत घाट
शिव के दर का पावन कपाट
गोमती तट का वह विस्तार
माँ के आँचल का लगे सार

कलरव की धुन का अंत छोर
पंक्षी उड़ते कर मधुर शोर
हम बैठे थे बस इसी काल
हिय के हिलोर को रहे पाल

वह मंद मंद बहती धारा
ज्यूँ जग जीवन चलता सारा
आसार सार यह "उर्वी"सारा
चलना जीवन चलती धारा

फिर साथ साथ नौका विहार
युगल दृगों का युगल प्यार
वह मधुर स्वरों का गायन वादन
माँ गोद मध्‍य यह अपना पन

माँ का करना पद-प्रच्छालन
परिणय प्रज्ञ करना पालन
दे आशीष हो रही विभोर
फिर आज बँधी परिणय की डोर

तेरे कर का स्पर्श किया
ज्यूँ पाणि तेरा फिर ग्रहण किया
फिर सांझ घनेरी आई यूँ
ज्यूँ माँ ने हमें विस्राम दिया

सब मगन चल रहे अपने में
हम युगल स्वयं के सपने में
इस पार नहीं उस पार नहीं
यूँ जैसे अब संसार नहीं

कैसा कठोर समय का वेग
घट गया तरणी का मधुर वेग
पल में पहुचे हम तल पर
तरणी के लगते ही तट पर

वह पल भर का नौका विहार
रच गया ह्रदय के क्षार क्षार
वह सांध्य घड़ी वह मधुर विहार
जीवन के पल का इक सृंगार

             उमेश कुमार श्रीवास्तव (०१.०४.१९९५)


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