बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

ग़ज़ल

ग़ज़ल

फिजाओं पे रंगत है छाने लगी
हर कली आज फिर गुनगुनाने लगी

तुमने हँस के जो पूछा मेरा अहले हाल
मेरे खूं में रवानी है छाने लगी

खैरमकदम तेरा यार कैसे करूँ
खुशी में ज़ुबाँ लड़खड़ाने लगी

आज का दिन कितना हसीं बन गया
हर तरन्नुम तेरी याद आने लगी

अय मेरे हमनशीं अय मेरे हम सफ़र
तेरे नालों की नमी है बुलाने लगी

सब्र करता रहा सब्र जाता है अब
तेरी बेताबी मुझको सताने लगी

रंजो-गम भूल कर मुस्कुराती रहो
मेरे दिल से दुआ आज आने लगी

दिल की राहों में ज़रा तुम कदम तो सुनो
मेरे कदमो की आवाज़ है आने लगी

फिजाओं पे रंगत है छाने लगी
हर काली आज फिर गुनगुनाने लगी

                  उमेश कुमार श्रीवास्तव

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