सोमवार, 13 मई 2019

मेरे विचार

  मेरे विचार


       कहा जाता है कि पृथ्वी पर चौसठ लाख योनियों में अपनें कर्मों के अनुरूप आत्मा अपने अन्तःकरण के साथ जन्म लेती हैं । यह वैज्ञानिक तथ्य है कि प्राणियों की लाखों खुंखार व अत्यधिक घृणित तथा भयावह प्रजातियां लुप्त हो गई हैं जिनमें जड़ योनि के पेड़ पौधों की भी प्रजातियां सम्मिलित हैं । जिससे ऐसी योनियां जिनमें अपना कर्मफल भोगने के लिये प्राण को जन्म लेना था वह बची ही नहीं । दूसरी तरफ मानव प्राणी की जनसंख्या अर्थात इस प्रकृति की योनी पृथ्वी पर अन्य प्राणियों की तुलना में स्वमं को स्थापित कर विकास करनें में सफल रही । अतः जो योनियां जानवरों कीड़े मकोड़ो पेड़ पौधों की लुप्त हुई उस योनि के घृड़ित विभत्स, दुर्दान्त कर्म करते हुए अपना कर्म फल भोगने हेतु उस प्रकृति की आत्मा सह अन्तःकरण को उपलब्ध मानव योनि में ही जन्म लेना पड़ रहा है । जिससे देखने में मानव जनसंख्या में वृद्धि दिखती है किन्तु वास्तव में मानव स्वरुप में अधिकांश जनसंख्या उन विलुप्त जानवरों कीट पतंगों पक्षियों पेड़ पौधों की हैं जिनकी योनियां विलुप्त हो चुकी हैं । इसी कारण इन योनियों में जन्म लेने से उनके जो गुण स्वभाव होते वे मानव में दिख रहे है । अतः इन्हे इनके आकार प्रकार के आधार पर इन्हे मानव मानने की भूल भूल कर भी न करियेगा । दो हाथ दो पैर ,दो आंख दो कान एक नाक सह सिर के सभी प्राणी मानव नहीं रह गये हैं यह समझते हुये इनसे वर्तमान युग में डरना स्वाभाविक है ।
मेरी सोच मेरा आंकलन सहमत तो स्वागत असहमत तो क्षमाप्रार्थी

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