सोमवार, 13 मई 2019

दर्द की छाया

दर्द की छाया

दर्द अहसासों के सहारे
धमनियों से गुजरता है जब
इक शीत की लहर सी
चलती है संग संग
गर्म लहू जमने सा लगता है
दिल की सुरम्य वादियों में
पतझड़ सा छा जाता है
उजड़ जाती हैं
बसी फूलों की बस्ती
कलियां सूख कर
झड़ जाती हैं शाखाओं से

दर्द एकाकी न होता है कभी
वह काफ़िला संग लिये चलता है
मन मस्तिष्क पर चढ़ दौड़ते
जब अश्व उसके
हो जाती हैं शिथिल  इन्द्रियां पंचम
शीत कुहासे से घिरा एकाकी हिय
संकुचन की परा छू लेता है
धड़कने छोड़ देती है साथ
प्राणवायु ही जब दगा देती है

दर्द अहसासों के सहारे
चुपके से
धमनियों से शिराओं में उतर आता है
शिराओ के मकड़जाल में फंस
सारे वजूद को आगोश में ले
शिव से वजूद को भी
शव सदृष्य बना जाता है

दर्द कैसा भी हो
न बाटों यारों
बांटना ही है तो प्यार बांटो यारों
दिल की राह पर जो दर्द आ जाता है
अच्छे अच्छों की वो दुनियां मिटा जाता है
प्यार वह बाग है जो
हर दिल में सजाना होगा
फूलों के मकरंद से भी उसे महकाना होगा
न कर सको ऐसा तो
बस इतना कर लो
गरल छोड़, अमी का
संग कर लो

उमेश कुमार श्रीवास्तव २८.१२.२०१६ (12.00)

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