शनिवार, 11 मई 2019

श्याम श्वेत घन

गहन गगन से
उतरे घन
श्वेत श्याम कुछ,
कुछ रक्तिम रक्तिम
कुछ कपास की
ओढ़े सदरी
कुछ ओढ़े हैं पीतवसन

अरूण संग बाल रवि
रश्मि प्रभा
बिखरी अनुपम
मृदु मेघ घनेरे
घेरे  घेरे
बहते चलते
रवि संग संग

रश्मि प्रभा
छिटकी बिखरी सी
इधर उधर
अटकी भटकी सी
जूझ रही स्व रुप बचाने
रूप निरख
कर अवशोषित
प्रमुदित कितना
ये घन मन

रक्तिम , श्यामल
पीत, धवल
नीलकमल सा
मोहनि सुन्दर
हर रूप सलोना
धर फिरता चंचल

रश्मि संगनी
संग मचल मचल
दृग चंचल वय चंचल
काया में रख सुन्दर
हिय चंचल
कुछ इठलाता बलखाता
जता रहा
यह बादल दल

विहसित रूप जलज
सघन
घटा टोप घन
घन घन घन घन
छिपी किरण
रवि रश्मि सुनहरी
बेकल विकट
रुष्ठ पवन
सन सनन सनन
अब्द नीर बन
पड़े भूमि
हुए विकल अकुलाये
नीर बिन
नीर बिना बे चीर हुए
घन

मुक्त चपलिका
कुंदन कुंदन
विकल विकल
क्रन्दन क्रन्दन
नीर बहाते
बेनीर हुए घन

उमेश कुमार श्रीवास्तव, जबलपुर, दिनांक १०.०५.२०१७

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