शुक्रवार, 31 मई 2019

शासकीय आभियांत्रिकी महाविद्यालय जबलपुर परिसर में लगे वटवृक्ष को देख हुई संवेदना पर एक प्रस्तुति:

शासकीय आभियांत्रिकी महाविद्यालय जबलपुर परिसर में लगे वटवृक्ष  को देख हुई संवेदना पर एक प्रस्तुति:-


ऐ बरगद की छांव घनेरी
ना अकुला,
क्यूं व्यथित ह्रदय  ?
स्पन्दन विहीन मानव तन जड़
तुझको आरोपित जड़त्व व्यर्थ
प्रेम सुधा से आपूरित
हर पल्लव
मां के आंचल सा दे दुलार
तू सम्पूर्ण नर अर्धांश
नारी स्वरूप
देता स्नेह,दुलार,प्रेम,लाड़
कर देता सर्वस्व समर्पित
पर पाता क्या
उपहास, उपेक्षा
व्यथा,भग्न ह्रदय
की  अकथ पीर घनेरी
अश्रु आज तक बहा न सके
मरू सदृष्य दृग तेरे
तेरी व्यथा, पीड़ा
व्यर्थ नहीं वरन है यथार्थ
तू सर्वस्व समर्पित कर
मौन खड़ा
तेरे आंचल में पला बढ़ा
मनु वंशज
मद मस्त हुआ अनजान खड़ा
भूल मूल की पीड़ा
तन साध , तना सा तना खड़ा
पर तुझमें उसमें जो अन्तर है
ना वह जान सकेगा
तू बस देता वह बस लेता
वह ना मान सकेगा
हे , तरूराज
व्यथा तुम त्यागो
तुम तुम हो वे वे हैं
इस अंतर को जान
ऐ धरा सुता
क्षमा कर निष्ठुर ,कृतध्न
मानव को
तू सदा रही है प्रमुदित
बांटती आमोद
यूं सदा सरल बन जीना
सदियां ही गुजरी
अभी तुझे
ना जाने क्या क्या
ह्रदय चक्षु से है सहना
ना ह्रदय सरसता कम कर
लुटा ममत्व ,स्नेह ,प्रेम की बून्दें
भरती रह शुष्क ह्दय को
स्नेहिल जल से
अपने आंचल की
ठण्डी छांव तले
उमेश कुमार श्रीवास्तव 28.02.2017 जबलपुर

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