शनिवार, 4 मई 2019

ग़ज़ल जिगर का लहू है कागज पे यारो

ग़ज़ल  
जिगर का लहू है कागज पे यारो
ग़ज़ल कह न इसको फ़ना कीजिए

अश्के नमी है हर मोड़ पर
फिसलन से बच कर चला कीजिए

कसक-ए-मोहब्बत दिल में बसी है
दर पर न इसके हंसा कीजिए

जख़्मो से खूं तो अब भी है रिसता
हैं मरहम ये आँसू न गवाँ दीजिए

मैं तो हूँ, खाक-ए-चमन अब तो यारो
हमसे न यूँ अब मिला कीजिए

जिगर का लहू है कागज पे यारो
ग़ज़ल कह न इसको फ़ना कीजिए

                   उमेश कुमार श्रीवास्तव

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