शनिवार, 4 मई 2019

समय

समय


समय ,
अविरल धारा
प्रवाहित, आदि काल से
निरंतर,
निरापद,
राग द्वेष से परे
अपने नियत कर्म पथ पर

गुजरता रहा ,
हर कण,
निष्प्राण,या प्राण प्रवाहित
कोई अवरोध समय का
रहा कब किसी पर

हर चक्षु हैं खोजते
अच्छा या बुरा
अपने ही वातायन से
अपने ही बनाए
ज्ञान चक्षु के दायरो से

पर समय होता नही
अच्छा या बुरा
वह तो बस होता है
होने के लिए
जिससे हम बह सकें
निरंतर
अपनी यात्रा पथ पर

अपनी ज्ञान की पोटली को
ज्ञान का भंडार माने, हम
दोष देते रहें हैं, समय को
जो प्रेक्षक की तरह है
अविकल अटल, निरपेक्ष

हम चाहते बिन प्रयास
पाना सभी
ना चाहते अनायास
खोना कभी
सजगता कर्मठता निरंतरता
धैर्य सहनता
पुरुषार्थ की  है निशानियाँ
जिनके सहारे ही
समय सागर में है तिरना
पर भुला इसको दोष देते
हैं समय को

देखो ज़रा अपनी सफलता
क्या तब इसी की नाव में तुम
ना थे सवार
देखो ज़रा अपनी असफलता
क्या तब इसी  नाव में
ना थे छिद्र अपार
फिर किस बिना
देते समय की दुहाई
वो कहाँ से है
बुरा या अच्छा
मेरे भाई

उमेश कुमार श्रीवास्तवा ०४.१०.२०१४

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