गुरुवार, 9 मई 2019

ना यूं हमें ख्वाब में बुलाया करो

गजल

ना यूं हमें ख्वाब में बुलाया करो
मिलना हो तो हकीकत बन आया करो ।
रात फिर परेशां हमें कर डाला तुमनें
ऐसे डोरे हम पे न आजमाया करो ।
तुम जो मिल लेती हो ख्वाब में अपने
दिल, जमीं इश्क की ,आ आराम फरमाया करो ।
तड़पता किस कदर मैं खुद से बिछड़
मेरी रूह में उतर झांक जाया करो ।
हुश्न हो तुम ,नही मालूम इश्क की जलन
जरा इश्क की तलब ,खुद में भी जगाया करो ।
जानता, तुमको नही तलब इश्क-ए-आब की
पर मेरी तिश्नगी पे , तनिक तरस खाया करो ।
तुम तो जिन्दगी हो , मेरी जिन्दा दिल की
उसे इस कदर मायूस न बनाया करो ।
तब्बस्सुम को ख्यालों में न कैद रखो
मेरे इश्क पे थोड़ा तो मचल जाया करो ।
उम्र रक़ीब नहीं रुहानी बन जीने की
उम्र की आड़  ले दामन यूं न छुड़ाया करो।

उमेश श्रीवास्तव

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