सोमवार, 11 नवंबर 2013

सांध्य सुन्दरी अलबेली




चपल चीकने तन
मदमाता यौवन ,
स्वप्नीले नयन,
मंद सुगंध,अलको के घन से
झिरती खुशबू
फैलाती आती
सांध्य सुन्दरी, अलबेली

मदमस्त रक्त में सिहरन थिरकन
भर जाती
जब चुपके से,
गुनगुन गा जाती
वह निशा लाडली
चंचल नयनो से ,
कटि मटका
कर जाती घायल
तम दुहिता

सबकी बाहों में इठला जाती
ललचाती
उन्मुक्त भाव से
प्रेम सुधा गागर
लुढ़काती , आती
सांध्य सुन्दरी अलबेली

      उमेश कुमार श्रीवास्तव

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