गुरुवार, 21 नवंबर 2013

मैं हूँ वह क्षण



मैं हूँ वह क्षण,
जो गुजर चुका है,
जाने कब का
मैं हूँ वह कण,
अस्तित्व मिट गया है जिसका
मेरा शरीर अब मेरा क्या कहलाएगा
जब अर्पण कर दिया उसे,
जाने कब का
ये दिल भी उसका, मन भी उसका
मेरा अब कहलाए क्यूँ
जब अनुभव करते, सब मिल कर
प्रतिबिम्ब उसी का
ये स्पंदन मेरे रहे नहीं
ये चिंतन मेरा रहा नहीं
इस अगम अन्धमय हिय प्रदेश में
वाश हुआ है, जब से उसका
मैं हूँ वह क्षण,
जो गुजर चुका है,
जाने कब का
मैं हूँ वह कण,
अस्तित्व मिट गया है जिसका
       उमेश कुमार श्रीवास्तव

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