मंगलवार, 19 नवंबर 2013

उठो मौन व्रत तोडो




कितनी बार कहा था तुमसे
ना तुम चुप यूँ रहना
आज साल रही बेचैनी
जब चाहो कुछ कहना

भीड़ तंत्र है लोकतंत्र ये
चाहे हल्ला गुल्ला
जो चीखे जितने ही ज़ोर से
उसके सब दुमछल्ला

दो कौड़ी का त्याग नहीं पर
कहलाते सरताज सभी
सीना ताने चले अकड़ कर
करते सब पर राज वही

खून ख़राबा लूटपाट सब
काली काली माया
खद्दर कोट कमीज़ के नीचे
है सबने इन्हे छिपाया

यह दल है या वह दल है
सब कीचड़ के ही दलदल
पर सबने कितने जतन से देखो
सब को है भरमाया

घिन आती है सोच सोच कर
इन सब की वो फितरत
जनहित का झूठा झाँसा दे
साध रहे सब स्वारथ

देशभक्त औ सेवक जन वे
जो सचमुच के हैं पंडित (बुद्धिजीवी)
मौन साध कर देख रहे सब
होती , वर्जनाएँ सब खंडित

कब जागेंगे तंद्राओं से
समझ नही कुछ आता
एक एक ग्यारह भी होते
यह उन्हे क्यूँ नहीं भाता

मौन त्याग कर अब तो उठ लो
कीचड़ से तुम भय त्यागो
दलदल बन रहा , देश ये सारा
अब तो अपनी उष्मा दो

सोख लो सारी नमी मृदा से
जो दलदल पैदा करती
शौम्य धरा को वापस लाओ
जो सतयुग की हो धरती

राम राज्य को लाने को
इक राम नही है काफ़ी
वानर सेना के सेनानी बन
वह काम करो , जो है बाकी

चुन चुन कर सब चोर उचक्के
उनकी माया गान करो
जन जन तक फैले कु-ख्याति
ऐसा विशद बखान करो

टूट जाएगा भ्रमजाल सभी का
जब सच सम्मुख आएगा
प्रजातंत्र की प्रजा हेतु
यह देश तभी बच पाएगा

इसलिए आज फिर कहता हूँ
उठो मौन व्रत तोडो
इक इक को संग ले ले कर
अपनी कड़ियाँ जोड़ो

   उमेश कुमार श्रीवास्तव (२०.११.२०१३)




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