रविवार, 17 नवंबर 2013

चन्द शेर व मुक्तक


               १
निगाहों के खंजर न यूँ चलाओ हुजूर
थोड़ी सी पलकें झुका लो हुजूर
                २
भीग जाती हैं जब कभी पलकें मेरी
खिलखिलाने की कोशिसें करता हूँ मैं
आँसुओ के शैलाब भी पी जाता हूँ
क़ि कहीं कोई दर्दे दिल पहचान न ले
                ३
हर बात पर कभी कभी एतबार नहीं होता
नजरों का हर खंजर दिल के पार नही होता
दिल में यदि मोहब्बत है तो जुदाई है ज़रूरी
क्यूँ कि जहाँ तड़प न हो वहाँ प्यार नहीं होता
                  ४
कोई देता किसी को सहारा नही
मिलती कोई लहर दुबारा नहीं
सागर के होते दो किनारे मगर
प्रेम सागर में होता किनारा नहीं
                 ५
प्याले से पी के मय , लोग कहलाते शराबी
नज़रों से पीने वाला मैं, क्यूँ ? शराबी तो नहीं

                 उमेश कुमार श्रीवास्तव 

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