मंगलवार, 26 नवंबर 2013

जवानी के दर्द

         
                १
अब तो हूँ मैं लाश जिधर भी ले चलो
रंज गम औ खुशी को खुदा हाफ़िज

                २

कितने अरमां ले निकला था सफ़र में
काफिला बढ़ गया खाक के चंद गुबार दे कर

                ३

सिसकियाँ निकली न अश्क ही चश्मों से बहे
इक रेत का घरोंदा ढहा औ हम तन्हा रह गये

                ४

काश इक ख्वाहिश तो हो जाती पूरी
क्या आया ही हूँ जीने जिंदगी अधूरी

                ५

इतनी दफ़ा टूटा जुड़ा हूँ जिंदगी में
कि , बस उसी का नाम अब है जिंदगी

                ६

ढूँढने से लोग कहते खुदा मिलता
मुझको अब तक नाखुदा तक मिला नहीं

                ७

इतने अरमाँ क्यूँ पाल रखे थे तूने
कि मौत पर इनकी दो कतरे अश्क बहा न सके

                ८

खुशफ़हमियों नें मुझको है खाक में मिलाया
बदगुमानियाँ ही देखें कुछ राह ही दिखाएँ

                उमेश कुमार श्रीवास्तव

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