शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

ग़ज़ल




चुपके चुपके यूँ तेरा ख्यालों में आना ठीक नहीं
अंजुम में आओ तो अच्छा ख्वाबों में आना ठीक नहीं

मासूम जवानी सफ्फाक बदन मरमर मे तरासा है तेरा
यूँ हाथ उठा अंगड़ाई ले दीवाना बनाना ठीक नहीं

शोख तब्बस्सुम चाह लिए गुमसुम अधर की पंखुड़िया
बाधित न करो यूँ यौवन को अवरोध लगाना ठीक नहीं

कैसे न कहूँ बिस्मिल हूँ मैं तेरी हर कातिल चितवन से
उठती नज़र से तीर चला यूँ नज़रें झुकना ठीक नहीं

मैं तो प्यासा था प्यासा हूँ बैठा हूँ मय की आश लिए
मय की ही प्रतिमूरत हो जब . आ छिप जाना ठीक नहीं

...उमेश श्रीवास्तव..19.11.1994

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