शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

अर्ज़ है





करते मुसिर वो भूल जाने की मुझसे
दिल कम्बख़्त ,धड़कन की जगह नाम लिए जाता है



पंज़ीराई है मेरे अंजुमन में ये गम
तरन्नुम-ए-शहनाई ना राश आई मुझे



दर्दे दिल टीशा औ निकली फफोलों से आहें
जब कभी हम उन्हे दिल से भूलना चाहे



लगता है गुम्गस्ता है मेरा कुछ न कुछ
पा तुझे पास भूल जाता हूँ पूछना



दिल दर्द से जब जब टीशता है यारों
उनकी यादों का ही कोई लम्हा होता है



अंदर से उठ कर धुआँ गुजरता जब दिल के पास से
रौशनाई यादें बन कागज पे चल पड़ती हैं



है साँस उखड़ी मेरी यादों में गोते लिए
भूलना कहते किसे कोई बतला दे मुझे



फकत याद में होता रहा खाना खराब
वो भी कितने मगरूर हैं देते नही खत का जबाब



मेरे दिल पे कदम तेरे शोर कुछ यूँ कर रहे
ज्यूँ पतझड़े बयार में गुज़रा कोई पेड़ों तले

१०

जाती है फिसल नज़रें मेरी पड़ कर तेरे रुख्सार पर
हैं चाहते लब मेरे बोसा तेरे रुख्सार पर

                           उमेश कुमार श्रीवास्तव

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