मंगलवार, 26 नवंबर 2013

नीर



नीर 



नीर
इक लकीर है
अस्तित्व की
इस जगत में
जीवन की

नीर
इक प्रतिबिम्ब है
हृदय का
हर स्पंदन
है समाहित
उसमें

नीर
इक रश्मि है
प्रमोद की
दमकती है
नयनो में
मोतियो सम

नीर
इक पथ है
समाधि की
सज़ा
दया , करुणा, प्रेम से
बिठाती है पास
उसके

नीर
इक सृष्टि है
है समेटे
जड़ चेतन औ
अचेतन
ब्रम्‍ह को भी

नीर
इक कण
ओस का
गुमनाम सा उदय हो
गुमनाम रहना चाहता
देख अदृश्य होता, उजाला

नीर
इक जलद है
स्वच्छंद घुमक्कड़
दूसरों पर,
पर जीवन
कर देता तर्पण

नीर
इक समुद्र
विशाल वक्ष
शान्त,गंभीर
निश्च्छलता का
ओढ़े आवरण

नीर
बस नीर है
कुछ चंद जल कण
लुढ़क जाते अधर पर
औ कभी
पद रज तल

          उमेश कुमार श्रीवास्तव

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