शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

ग़ज़ल




ये ज़ुनू है वहशत है या है दीवानगी
कि हर शख्स मे तू है नज़र आती

प्यार से हर बुत को मैं चूमता फिरता
कि हर बुत तेरी अक्से-रु है नज़र आती

राहे इश्क पर कदम मेरे डगमगाते कुछ यूं
कि कभी पास कभी दूर तू है नज़र आती

तीर-ए-नज़र अब तो रोक लो साकी
दिल की हालत अब विस्मिल है नज़र आती

नाजो अदा तेरी देख लगता कुछ यू
हर फ़न में तू उस्ताद है नज़र आती

.....उमेशश्रीवास्तवा....दिनांक 24.11.1989..

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