बुधवार, 13 नवंबर 2013

वह लहर है कौन सी





वह लहर है कौन सी
जो ज्वार सी उठती ,
अस्तित्व को ढकती हुई
डूब कर आकंठ जिसमें
चैतन्य हो उठता हूँ मैं
अनभूतियो का इक नया
संसार रच जाती है जो
वह लहर है कौन सी

अदृश्य सा मैं दृश्यमान
स्थिर भी मैं , हूँ वेगवान
जड़त्व में भी द्रव्यभान
जो करा जाती मुझे
वह लहर है कौन सी

माया में हूँ लिपटा अभी
सिमटा समाधि में भी अभी
सुरभि सी मदमस्त कर
शूल सी चुभ जाती है जो
वह लहर है कौन सी

हंसता हूँ मैं जिस किसी पल
रोता भी हूँ मैं उसी पल
अनल अनिल दोनो हूँ मैं
कराती प्रतीत एक ही पल
सरिता भी तो तड़ाग भी
जो बना देती मुझे
वह लहर है कौन सी

आज तक ढूढा सदा
ना खोज पाया हूँ जिसे
 सिमटा कभी, विशाल भी
स्व आत्म को पाया हूँ मैं
उस लहर को पर अभी तक
ना ढूढ़ पाया हूँ मैं
औ भटकता हूँ पूछता
वह लहर है कौन सी.....?

          उमेश कुमार श्रीवास्तव

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