मंगलवार, 26 नवंबर 2013

तुम कौन ?



हैं कौन से वे कदम
जो बढ़ रहे , नित निरन्तर
इस अंधमय
गुह्य प्रदेश में , मेरे
जिसकी महक
मेहदी रची सी
छा रही
निर्जन पड़े से
शून्य हिय पर 
मेरे

हैं कौन कर द्वय
मेहदी रचे
उठती खनक
कलाईयों से
धानी चूड़ियों की
जिनसे
लुभाती मुझे

ये स्वप्निल नयन
नील हंस युगल सम
टकटकी बाँधे
निहारते जो मुझे
अपने लगें
पर, अजनबी से
हैं ये किसके

धड़कनें उठती निरंतर
शब्द दस्तक दे रहे
दिल पर मेरे जो
है ये किसकी
मुझे छू रही जो
बहकती सी

किस रूपसी का
सरसराता सा वसन
मुझको लपेटे हुए सा
अहसास करा जाता है जो 
बदन को,
ज्यूँ आलिंगन में भरे
हो कोई मुझको
प्यार करता

अरूणोदयी आभा की
शीतलता लिए
ये अधर किसके
जो मुझको
कर रहे बेकल
छू लेने को, उन्हे
अपने अधर से
पा लेने को
चन्द अमी कण

रात्रि की मध्यिका से
घने कुन्तलों में
दमकता
चाँद सा मुखड़ा
अहसास निरंतर करा रहा
हिय में बसी प्रतिमा
उसी की
जो निकट हो कर
मेरे इतने
समानान्तर दूरी लिए
क्षितिज सी
छू न पाता हूँ
अथक अपने प्रयत्न से
कैसे ना मानूं इसे
मैं स्वप्न सा

है स्वप्न सारा 
यह जान कर भी
टूटने के दर्द को समेटे
स्वयं में,
हैं प्रतीक्षा में
नयन-हिय द्वय
द्वार खोले खड़े
उसी की

           उमेश कुमार श्रीवास्तव

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