गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

अम्बुराज की मुस्कान

अम्बुराज की मुस्कान


निस्तब्द निरापद पड़ा था पंकज
सरवर मध्य अकेला
अश्रु बने शबनम थे उसके
तम जीवन का मेला
ओठों पर जड़ता निष्ठुर थी
थे थर्राते उसके गात
प्रेम प्यास से शुष्क था मनवा
लगी थी प्रिय दरस की आश
प्रेम रश्मि को लिए अरुण जब
आया धारणी के पास
पुलकित हो विभोर हो उठा
खिल उठी , मिलन की नई आश
रश्मि आ गई चुपके से जब
औ स्पर्श किया नीरज तन
विह्वल हो उठा अम्बुराज
पा सामिप्य जीवन संगिनी
धीरे से मुस्करा उठा अब्द
खिल उठी दिल की पंखुड़ियाँ
करने लगा हास-विलास
कट गई विरह की घड़ियाँ

       उमेश कुमार श्रीवास्तव

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