सोमवार, 30 दिसंबर 2013

फिर आया नया वर्ष !


फिर आया नया वर्ष !

इतिहास बनते  वर्ष ने 
नवजात को 
इक पोटली दी है 
जहर की। 
जिसमे ,
जहर की 
अनेको किस्में 
विशुद्ध रूप में अपने, 
विदयमान हैं 
यथा :
दंगा ,साम्प्रदायिकता 
भ्रष्टाचार , लूटपाट 
बालात्कार 
साथ ही दी है 
देश के सिर पर 
लटकती 
विभाजन की  कटार 

देखना है 
नवागन्तुक 
नवजात , शिशु 
कैसे इन विषों का 
शमन करता है 
शिव कहलाने को 
या फिर चुपचाप 
शैशव , युवा औ जरा 
अवस्था बिता 
इस पोटली के वजन में 
कर वृद्धि 
झुकाये सिर  
गत वर्ष कि तरह ही 
स्वयं भी 
अपने अनुज के 
गोद  में डाल 
करता पश्चाताप 
डूब कर ग्लानि में 
गुजर जाता है 
बनने को  इतिहास 
पूर्वजों की तरह

                उमेश कुमार श्रीवास्तव  

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