शनिवार, 28 दिसंबर 2013

अनुपमा

अनुपमा


सावन की शर्मीली छुईमुई
या बसंत में खेतो का सृंगार
तुमको दूं मैं क्या उपमा
प्रमुदित दिल का है सभी द्वार

पतझड़ में प्रकृति सौंदर्य सदृश्य
फूली टेशू की डाली हो
या कामदेव को रिझा रही
रति कोई मतवाली हो

घन सदृश्य कुन्तल बिच में
खिला प्रसून कमल का है
या रजनी के अंक मध्य
बाल्य रूप दिवस का है

नयनो की अमी है ओठो पर
या कामदेव की ज्वाला है
या अधरो पे लेती हिलोर
सकल निरधि हाला है

है सकल अंग अनुपम तेरा
इनकी उपमा अब कैसे करूँ
बस इतना सोच रहा अब हूँ
मधुकर बन मधु मैं चख लूँ

                उमेश कुमार श्रीवास्तव

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