मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

दर्द-ए-जवानी(ग़ज़ल)

दर्द-ए-जवानी(ग़ज़ल)

आज जो टूटा दिल मेरा, तो कितने करीने से
कि दर्द भी महसूस हुआ, तो आँखो के रास्ते

कितने सजो रखे थे मैने, सपनो के महल
ये गुमान न था कि, हैं ये शीशे के बने

इन अश्को को खूं कहूँ या, कतरे सिर्फ़ पानी के
निकल आए जो, दिल के फफोलों में पल

अपनी किश्मत पे कितना रश्क था मुझको
आज अश्को नें दूर कर दी, बदगुमानी मेरी

मैने तोला था खुद को, जिन मोतियों के मोल
जमाने के बाजार में, शबनम के वो कतरे निकले

कितनी बेमानी सी लगती है, अब ये जिंदगी अपनी
लगता जमाने की राहों पर, टूट कर जाऊँगा बिखर

                         उमेश कुमार श्रीवास्तव

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