रविवार, 15 दिसंबर 2013

ग़ज़ल




हम से तो अच्छे वो मयख्वार साकी
मासूक को लब से लगा लेते हैं

ग़मे इश्क को मिलता नही कोई रफ़ीक
जो मिलते हैं झट पर्दा गिरा लेते हैं

मयकश को मिल जाती मय, जा मयकदा
हम तो कूंचे-यार में दिन गुज़ार देते हैं

झूमता मयख्वार, यार सीने से लगा
हमें ख्वाबों से , वो भगा देते हैं

जानते नहीं फन दिलरुबाई का साकी
हम तो शोलो को ही सबा देते हैं


                               उमेश कुमार श्रीवास्तव
                 दिनांक: २४.११.१९८९


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